श्री चिंतामन सिद्ध गणेश मंदिर (सिद्धपुर) सीहोर | स्वयं भू गणेश | - Kavita Rawat Blog, Kahani, Kavita, Lekh, Yatra vritant, Sansmaran, Bacchon ka Kona
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बुधवार, 17 मई 2023

श्री चिंतामन सिद्ध गणेश मंदिर (सिद्धपुर) सीहोर | स्वयं भू गणेश |



देश में चिंतामन सिद्ध गणेश की चार स्वंयभू प्रतिमाएं हैं, जिनमें से एक सीहोर में विराजित हैं। यहां साल भर लाखों श्रृद्धालु भगवान गणेश के दर्शन करने आते हैं तथा अपनी मन्नत के लिए उल्टा सातिया बनाकर जाते हैं।  भोपाल से लगभग 45 कि.मी. निकट बसे सीहोर जिला मुख्यालय से करीब तीन किलोमीटर दूरी पर स्थित चिंतामन गणेश मंदिर वर्तमान में प्रदेश भर में अपनी ख्याति और भक्तों की अटूट आस्था को लेकर पहचाना जाता है। प्राचीन चिंतामन सिध्द गणेश को लेकर पौराणिक इतिहास है। जानकारों के अनुसार चिंतामन सिद्ध भगवान गणेश की देश में चार स्वंयभू प्रतिमाएं हैं। इनमें से एक रणथंभौर सवाई माधोपुर राजस्थान, दूसरी उगौन स्थित अवन्तिका, तीसरी गुजरात में सिद्धपुर और चौथी सीहोर में चिंतामन गणेश मंदिर में विराजित हैं। इन चारों स्थानों पर गणेश चतुर्थी पर मेला लगता है। 
इस मंदिर का इतिहास करीब दो हजार वर्ष पुराना है। श्रुति है कि सम्राट विक्रमादित्य सीवन नदी से कमल पुष्प के रूप में प्रगट हुए भगवान गणेश को रथ में लेकर जा रहे थे। सुबह होने पर रथ जमीन में धंस गया। रथ में रखा कमल पुष्प गणेश प्रतिमा में परिवर्तित होने लगा। प्रतिमा जमीन में धंसने लगी। बाद में इसी स्थान पर मंदिर का निर्माण कराया गया। आज भी यह प्रतिमा जमीन में आधी धंसी हुई है। इस मंदिर में विराजित गणेश प्रतिमा के प्रकट होने के संबंध में एक अन्य किवदंती के अनुसार सीहोर से करीब सोलह किलोमीटर की दूरी पर पार्वती नदी का उद्गम स्थल है। सैकड़ों वर्ष पहले पार्वती नदी की गोद में श्री गणेश श्यामवर्ण काले पत्थर की सोने के रूप में दिखने वाली मूर्ति के रूप में एक ऊंचे स्थान पर विराजित थे। उस समय आसपास के रहवासी और योगी और संताें ने भी यहां पर कई सिध्दियां अर्जित की है। इतिहासविद बताते है कि करीब साढ़े तीन सौ वर्ष पूर्व पेश्वा युध्दकाल के दौरान पूर्व प्रतापी मराठा पेशवा बाजीराव प्रथम ने अपने साम्राज्य विस्तार की योजना से पार्वती नदी के उस पार पड़ाव डालने का मन बनाया, लेकिन नदी के बहाव के आगे बाजीराव प्रथम की राज्य विस्तार की योजना खटाई में पड़ गई। जब पेशवा बाजीराव नदी में उठे बहाव के थमने का इंतजार कर रहे थे उस समय रात्रि में राजा पेशवा को स्थानीय रहवासियाें ने यहां पर विराजित भगवान गणेश की महिमा के बारे में बताया। जिसे जानकर पेशवा बाजीराव में रात्रि के समय यहां विराजित श्री गणेश की प्रतिमा के दर्शन करने की लालसा मन में जागी और पेशवा बाजीराव अपने मंत्री व सैनिकाें के साथ प्रतिमा के दर्शन करने के लिए नियत स्थान की ओर रवाना हुए, जिसके बाद पेशवा बाजीराव ने प्रतिमा की खोज के बाद अपनी सेना सहित यहां विराजित भगवान श्री गणेश की प्रतिमा की विधिवत पूजा अर्चना की और साम्राज्य विस्तार के लिए निकले। पेशवा बाजीराव ने श्री गणेश की प्रतिमा से मनोकामना की कि साम्राज्य विस्तार कर लौटने के बाद मैं नदी के तट पर देवालय बनवाऊँगा। ऐसी प्रतिज्ञा कर पेशवा बाजीराव अपनी सेना के साथ युध्द विजय के लिए चल पड़ा।
          कुछ ही दिनाें में पेशवा बाजीराव को अभूतपूर्व सफलता मिलने के बाद उन्हाेंने अपनी प्रतिज्ञा अनुसार पार्वती नदी पर विराजित सिध्दपुर सीहोर में सीवन नदी के तट पर सुंदर देवालय बनवाया। श्री गणेश के प्रिय रक्त चंदन के रथ में भगवान को विराजमान कर विद्ववानाें द्वारा वेद उच्चारण और ढोल ढमाकाें के साथ अपनी सेना के साथ एक भव्य शोभायात्रा लेकर चल पड़े, लेकिन पेशवा बाजीराव द्वारा गणेश प्रतिमा को अन्यत्र ले जाने पर स्थानीय गांववासियाें ने राजा को मान मनोहार कर रोकने का प्रयास किया, लेकिन पेशवा बाजीराव अपनी प्रतिज्ञा अनुसार श्री गणेश की प्रतिमा को रथ के माध्यम से अन्यत्र ले जाने पर अड़िग थे। इस मंदिर से जुड़ी किवदंतियाें में यह उल्लेखित है कि पेशवा द्वारा पार्वती नदी से निकाली गई यह शोभायात्रा नियत स्थान पर पहुंचने से पूर्व ही रूक गई, जिसके लिए पूरे प्रयास कई दिन तक चलते रहे, लेकिन सभी प्रयास असफल ही रहे और रथ के पहिये धसने लगे। रथ को निकालने के तमाम प्रयासाें के बीच जब पेशवा बाजीराव पस्त होकर थक हार गए तब उन्होंने सेना सहित वहीँ रात्रि विश्राम किया। वहीँ राजा की निंद्रा अवस्था में क्षणिक स्वप्न दिखा इस स्वप्न ने श्री गणेश ने पेशवा बाजीराव को दर्शन देते हुए बताया कि राजन तुम अब ओर प्रयास न कराें मैं मां पार्वती के भक्तों की इच्छानुसार यही विराजूंगा और यह स्थान भी सिध्द हो गया है। तब पेशवा बाजीराव ने स्वप्न के बाद श्री गणेश की आज्ञा को शिरोधार्य करते हुए इसी जगह मंदिर का निर्माण करवाया, जो वर्तमान में चिंतामन श्री गणेश मंदिर के रूप में जाना पहचाना जाता है।
         यहाँ आकर श्रद्धालु अपनी मन्नत के लिए उल्टा सातिया बनाकर जाते हैं और जब उनकी मन्नत पूरी हो जाती है, तो मंदिर आकर सीधा सातिया बनाकर फिर अपने घर जाते हैं.... श्रोत: दैनिक भास्कर
आओ मिलकर गायें.........
गजानन कर दो बेड़ा पार, आज हम तुम्हें बुलाते हैं ।
तुम्हें मनाते हैं गजानन, तुम्हें मनाते हैं ।।
सबसे पहले तुम्हें मनावें, सभा बीच में तुम्हें बुलावें ।
गणपति आन पधारो, हम तो तुम्हें मनाते हैं ।।
आओ पार्वती के लाला, मूषक वाहन सुंड -सुन्डाला ।
जपें तुम्हारे नाम की माला ,ध्यान लगाते हैं ॥
उमापति शंकर के प्यारे, तू भक्तों के काज सँवारे ।
बड़े-बड़े पापी तारे, जो शरण में आते हैं ॥
लड्डू पेड़ा भोग लगावें ,पान सुपारी पुष्प चढ़ावें ।
हाथ जोड़ के करें वंदना ,शीश झुकाते हैं ॥
सब भक्तों ने टेर लगायी, सब ने मिलकर महिमा गाई ।
रिद्धि -सिद्धि संग ले आओ, हम भोग लगाते  हैं ॥